दर्द

हो कर  मायूस तुम  यू  ख़ामोश से क्यों रहते हो
जुदाई का दर्द पाकर खुद से खफा क्यों रहते हो 
सब्र औऱ इंतज़ार ही बदलती हैं फ़ैसले तक़दीर के 
सच्ची हैं ग़र मोहब्बत तो ना उम्मीद क्यों रहते हों 

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