क्या याद है तुम्हे की यहाँ हम अक्सर मिलने आते थे सारे गम भुला कर यहाँ हम अक्सर मिलने आते थे बीते दौर की बाते भूल से भी नही भुलाई जाती की कैसे जान हथेली पे रख कर हम अक्सर मिलने आते थे
हो कर मायूस तुम यू ख़ामोश से क्यों रहते हो जुदाई का दर्द पाकर खुद से खफा क्यों रहते हो सब्र औऱ इंतज़ार ही बदलती हैं फ़ैसले तक़दीर के सच्ची हैं ग़र मोहब्बत तो ना उम्मीद क्यों रहते हों