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तजुर्बा

 पूछता हैं मुझ से ज़माना कि तुम ने अब तक क्या पाया हैं  है यही ज़वाब कि मेने मुसीबतों से लड़ने का तजुर्बा पाया हैं 

सिर्फ एक बार

 एक बार ही सही जरा पीछे मुड़ कर हाल जान लिया होता  तुम बिन कैसे रह पायेंगे खुश हम ये भी जान लिया होता!

सिर्फ किस्से

 किताबों के पन्नों पर बस किस्से लिखे रह गये कहां शुरू कहा खत्म हम सिर्फ यही सोचते रह गये!!

मुलाक़ात

क्या याद है तुम्हे की यहाँ  हम अक्सर मिलने आते थे सारे गम भुला कर यहाँ  हम अक्सर मिलने आते थे बीते दौर की बाते भूल से भी नही भुलाई जाती की कैसे जान हथेली पे रख कर हम अक्सर मिलने आते थे

सब्र

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यू हो कर मायूस क्यूँ ग़मगीन होता हैं  रख सब्र दिल मे  क्यु ग़मगीन होता है  होंगे हकीम  दिली अरमाँ यू  सारे पूरे  देख के बुरा दौर क्यु ग़मगीन होता है 

भूले बिसरे रिश्ते

दरवाज़े बंद दिलों के तोड़ने हैं  अब फिर पुराने दोस्त जोड़ने हैं गिला शिकवा दूर करने का वक़्त हैं  अब दिलों के रिश्ते सब से जोड़ने हैं 

दर्द

हो कर  मायूस तुम  यू  ख़ामोश से क्यों रहते हो जुदाई का दर्द पाकर खुद से खफा क्यों रहते हो  सब्र औऱ इंतज़ार ही बदलती हैं फ़ैसले तक़दीर के  सच्ची हैं ग़र मोहब्बत तो ना उम्मीद क्यों रहते हों